कवर्धा विशेषछत्तीसगढ़ प्रादेशिकपब्लिक चॉइस

कवर्धा में ‘विकास’ का नया मॉडल: चेक डेम बिना पानी के ढहे, नल बिना जल के बहें!

कवर्धा। जिले में विकास अब ‘कागजी पुलिंदों’ तक सिमट चुका है, और भ्रष्टाचार ‘मजबूत नींव’ की तरह जमीनी स्तर पर जड़ें जमा चुका है। सरकारी खजाने से करोड़ों रुपये विकास के नाम पर बहाए जा रहे हैं, लेकिन इनका असर सिर्फ ठेकेदारों और अफसरों की जेबों में दिख रहा है। जनता के लिए तो बस सूखे चेक डेम, प्यासे नल और अधूरी योजनाएं ही बची हैं।

पहला अजूबा:

भोरमदेव अभयारण्य के कोकदा में 30 से 35 लाख रुपये प्रति नग की लागत से दो चेक डेम बनाए गए, लेकिन कुछ ही महीनों में ये धराशायी हो गए। अब स्थिति ऐसी है कि ये देखने से ज्यादा रोने लायक लगते हैं। जिनका मकसद पानी सहेजना था, वे खुद ही पानी मांग रहे हैं! नींव खोखली, दीवारें दरारों से भरी और फ्लोरिंग ऐसे उखड़ी जैसे यहां भूकंप आया हो!

प्रदेश युवा कांग्रेस के सचिव आकाश केशरवानी ने आरोप लगाते हुए बताया कि वन विभाग के भ्रष्ट अधिकारियों ने ठेकेदारों से मिलीभगत कर लाखों रुपये का गोलमाल किया, जिसका नतीजा यह है कि चेक डेम बनने के कुछ महीनों बाद ही जवाब दे गए। सरकार की योजना थी कि ये चेक डेम जल संरक्षण करेंगे, लेकिन भ्रष्टाचार ने इस पर ही पानी फेर दिया।

दूसरा अजूबा:

बोड़ला विकासखंड के ग्राम मुड़वाही में नलजल योजना के तहत 60 लाख रुपये खर्च किए गए, लेकिन अब तक लोगों की प्यास नहीं बुझी। कारण? जहां बोरिंग किया, वहां पानी ही नहीं निकला!

आकाश केशरवानी का आरोप है कि अफसरों और ठेकेदारों ने बिना सही जांच किए बोरिंग करवा दी, और जब पानी नहीं निकला तो योजना अधूरी छोड़ दी गई। अब हालत यह है कि गांव में पानी टंकी तो खड़ी कर दी गई, पाइपलाइन भी बिछ गई, लेकिन नलों से पानी की एक बूंद नहीं टपकी! प्रशासन को शायद यह उम्मीद थी कि सरकारी योजना की घोषणा मात्र से ही पानी प्रकट हो जाएगा!

आकाश केशरवानी ने आरोप लगाते हुए कहा कि भाजपा शासनकाल में जिले के प्रशासनिक एवं विभागीय अधिकारी बेलगाम हो चुके हैं। वे एसी चेंबरों में बैठकर ही विभाग चला रहे हैं, जिससे जमीनी हकीकत से उनका कोई वास्ता नहीं रह गया है। उन्होंने सवाल उठाया कि अगर सरकार विकास के प्रति गंभीर है, तो फिर निर्माण कार्यों में धांधली करने वाले अफसरों और ठेकेदारों पर कार्रवाई क्यों नहीं होती?

अब सवाल उठता है कि क्या सरकार और प्रशासन इन घोटालों पर कोई कार्रवाई करेगा, या फिर ‘विकास’ को इसी तरह कागजों में बहता रहने दिया जाएगा? जब सरकारी योजनाएं ही प्यासा छोड़ दें, तो जनता किसे दोष दे? शायद, कवर्धा में अब विकास का मतलब—ठेकेदार मालामाल, जनता बदहाल ही रह गया है!

Related Articles

Leave a Reply

Back to top button

Discover more from THE PUBLIC NEWS

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading