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राष्ट्रवाद बनाम बयानबाज़ी: पहलगाम हमले पर नरेश टिकैत के बयान से मचा सियासी भूचाल

कवर्धा। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हाल ही में हुए आतंकी हमले ने देश को झकझोर कर रख दिया। पाकिस्तान समर्थित आतंकियों द्वारा 26 निर्दोष पर्यटकों की निर्मम हत्या ने एक बार फिर सीमा पार के नापाक इरादों को उजागर कर दिया है। इस हमले के बाद केंद्र सरकार ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए सिंधु जल समझौते की समीक्षा कर पाकिस्तान को मिलने वाला पानी रोकने का ऐलान किया है।

हालांकि, जहां एक ओर यह कदम आम जनता और देशभक्त तबकों में ‘कूटनीतिक साहस’ के रूप में देखा जा रहा है, वहीं दूसरी ओर किसान नेता नरेश टिकैत के बयान—”भारत और पाकिस्तान के किसान एक हैं, अतः सिंधु जल समझौता रद्द नहीं होना चाहिए”—ने एक नई बहस को जन्म दे दिया है। इस बयान ने न सिर्फ राजनीतिक तापमान बढ़ाया है, बल्कि राष्ट्रवाद बनाम सह-अस्तित्व की पुरानी बहस को भी हवा दे दी है।

कवर्धा में विरोध प्रदर्शन, पुतला दहन और ज्ञापन सौंपा गया

कवर्धा में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में किसान मोर्चा ने नरेश टिकैत के बयान के विरोध में जमकर प्रदर्शन किया। किसान मोर्चा जिला अध्यक्ष भुनेश्वर चंद्राकर के नेतृत्व में कार्यकर्ताओं ने नरेश टिकैत का पुतला फूंका और जिलाधीश को ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन में टिकैत के खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा दर्ज करने की मांग की गई। इस मौके पर भाजपा जिलाध्यक्ष राजेंद्र चंद्रवंशी, पूर्व जिलाध्यक्ष अनिल सिंह ठाकुर समेत कई वरिष्ठ पदाधिकारी मौजूद रहे।

राजनीति या राष्ट्रवाद?

टिकैत के बयान ने जहां भाजपा को एक स्पष्ट वैचारिक लाइन खींचने का अवसर दिया, वहीं टिकैत खेमे से अब तक कोई ठोस सफाई नहीं आई है। किसान आंदोलनों से जुड़े वर्ग इसे टिकैत की “कृषि-मानवता” की सोच कह सकते हैं, लेकिन वर्तमान परिप्रेक्ष्य में यह बयान देश की सुरक्षा और जनभावनाओं के ठीक विपरीत प्रतीत होता है।

जनता की भावनाएं और सियासी दांव

स्थानीय जनता में भी इस हमले को लेकर गहरा आक्रोश है। लोगों का मानना है कि जब बात देश की एकता और सुरक्षा की हो, तो किसी भी स्तर पर समझौता नहीं किया जा सकता। पुतला दहन में शामिल एक भाजपा कार्यकर्ता ने कहा, “देश की रोटी खाकर, देश विरोधी बोलना अब नहीं चलेगा। ये वक्त चुप रहने का नहीं, जवाब देने का है।”

क्या टिकैत ने खुद की साख पर वार किया?

नरेश टिकैत, जो लंबे समय से किसान आंदोलनों का एक बड़ा चेहरा रहे हैं, उनका यह बयान उनकी साख पर असर डाल सकता है। खासकर तब जब देश “राष्ट्रवादी” बनाम “प्रगतिशील” विमर्श के बीच झूल रहा है। आने वाले दिनों में टिकैत की प्रतिक्रिया और राजनीतिक दलों की अगली चाल इस विवाद को और किस दिशा में ले जाएगी, यह देखने वाली बात होगी।

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