कवर्धा पीजी कॉलेज में ₹1.22 करोड़ का घोटाला: मुख्य आरोपी प्रमोद वर्मा गिरफ्तार, दस्तावेज छिपाकर घर में रखे थे

कवर्धा। शासकीय आचार्य पंथ गंध मुनि नाम साहेब पीजी कॉलेज में करोड़ों रुपये के गबन के मामले में बड़ी कार्रवाई हुई है। पुलिस ने घोटाले के मुख्य आरोपी सहायक ग्रेड-2 प्रमोद वर्मा को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया।
यह मामला महज वित्तीय गड़बड़ी नहीं, बल्कि सरकारी व्यवस्था और शैक्षणिक संस्थानों की छवि को ठेस पहुंचाने वाला घोटाला है, जिसमें आरोपी ने कॉलेज की जनभागीदारी राशि, स्ववित्तीय मद और अन्य मदों में ₹1.22 करोड़ से अधिक की हेराफेरी की।
कैसे हुआ घोटाले का पर्दाफाश?
कॉलेज संचालन में गड़बड़ी की शिकायत सबसे पहले जनभागीदारी समिति के अध्यक्ष रिंकेश वैष्णव ने की थी। जांच में सामने आया कि जनभागीदारी मद की ₹28.32 लाख की राशि गबन की गई है। इसके बाद उच्च शिक्षा विभाग द्वारा गठित जांच समिति ने पूरे घोटाले की परतें खोलीं और पाया कि कुल ₹1,22,59,125 की रकम का गबन हुआ है।
FIR क्रमांक 728/2024 थाना कवर्धा में दर्ज हुई, जिसे बाद में संशोधित किया गया। पुलिस अधीक्षक धर्मेंद्र सिंह के निर्देशन में यह गंभीर प्रकरण गहनता से विवेचना में लिया गया।
जानिए किन मदों में हुआ गबन
- 💰 ₹1,13,28,570 की राशि बैंक और खजाने में जमा ही नहीं की गई।
- 💡 ₹2,20,000 बिजली बिल के नाम पर निकाले गए लेकिन भुगतान नहीं हुआ।
- 📞 ₹9,40,555 मोबाइल बिल, ऑडिटोरियम किराया एवं अन्य मदों में अनियमित उपयोग।
- 📉 ₹24,81,805 की राशि स्ववित्तीय मद में कम जमा की गई।
दस्तावेज छिपाकर घर में रखे गए
जांच के दौरान चौंकाने वाला खुलासा यह हुआ कि आरोपी प्रमोद वर्मा ने कई मूल लेखा दस्तावेज जानबूझकर छिपाए और उन्हें अपने घर में रख लिया। पुलिस ने कॉलेज की अलमारी और आरोपी के निवास स्थान से दस्तावेज जब्त किए। पूछताछ में खुद आरोपी ने कबूला कि वह कॉलेज के कई महत्वपूर्ण रिकॉर्ड घर पर रखे हुए था।
गिरफ़्तारी में टीम की महत्वपूर्ण भूमिका
थाना कवर्धा प्रभारी लालजी सिन्हा, साइबर सेल प्रभारी मनीष मिश्रा, उप निरीक्षक त्रिलोक प्रधान, एएसआई संजीव तिवारी सहित पुलिस टीम ने महीनों तक दस्तावेजों का विश्लेषण किया, डिजिटल साक्ष्य जुटाए और आरोपी की हर गतिविधि पर नजर रखी।
टीम की सतर्कता और पेशेवर कौशल से ही यह कार्रवाई संभव हो सकी।
जांच अब भी जारी, और खुल सकते हैं राज
पुलिस का कहना है कि घोटाले में अन्य कर्मचारियों या अधिकारियों की मिलीभगत की भी जांच की जा रही है। गबन की शेष राशि और उसके लेन-देन का पूरा लेखा-जोखा जुटाया जा रहा है।
बड़ा सवाल: इतने लंबे समय तक किसी को भनक कैसे नहीं लगी? क्या यह सुनियोजित प्रशासनिक चूक थी या मिलीभगत?