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कवर्धा जिला अस्पताल में मेडिकल घोटाला : फर्जी प्रमाण पत्र मामले में डॉक्टरों की भूमिका संदिग्ध, पुलिस ने सीएमएचओ से मांगी जानकारी

कवर्धा। जिले के मुख्य जिला अस्पताल में मेडिकल फर्जीवाड़े का सनसनीखेज मामले में एक नया मोड़ आया है, जो स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर रहे हैं। इस फर्जीवाड़े को लेकर एफआईआर नंबर 0255/2022 कवर्धा कोतवाली में दर्ज की गई थी जिसका जाँच लंबित था, और अब पुलिस ने मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (CMHO) डॉ. बी.एल. राज से इस मामले में अहम जानकारी मांगी है।


जांच में लिपिक दोषी, मगर डॉक्टरों पर चुप्पी क्यों?

मामले की प्रारंभिक जांच CMHO डॉ. राज ने की, जिसमें लिपिक दीपक सिंह ठाकुर और नेत्र सहायक अधिकारी मनीष जॉय को दोषी करार दिया गया। हालांकि, जांच रिपोर्ट पर सवाल खड़े हो रहे हैं क्योंकि मुख्य भूमिका निभाने वाले डॉक्टरों पर कोई स्पष्ट कार्रवाई नहीं हुई।

🔹 सिविल सर्जन डॉ. सुरेश कुमार तिवारी पर आरोप है कि उन्होंने नेत्र परीक्षण किए बिना ही आरक्षक डेविड लहरे को “फिट” घोषित कर दिया और मेडिकल सर्टिफिकेट जारी कर दिया। लेकिन जांच रिपोर्ट में उनका नाम तक नहीं आया।

🔹 डॉ. स्वपनिल तिवारी, जिन्होंने सिर्फ बीपी और शुगर टेस्ट करने के बाद बिना अन्य किसी परीक्षण के मेडिकल सर्टिफिकेट पर हस्ताक्षर कर दिया, उन्हें भी जांच रिपोर्ट में नजरअंदाज किया गया।


मेडिकल रिकॉर्ड में गड़बड़ी, दस्तावेजों की फॉरेंसिक जांच की मांग

नेत्र सहायक अधिकारी मनीष जॉय ने आवेदन देकर इस घोटाले की गंभीरता को उजागर किया। उन्होंने कहा कि आरक्षक के मेडिकल सर्टिफिकेट में मेडिसिन जांच और नेत्र परीक्षण की रिपोर्ट हूबहू एक जैसी लिखावट में हैं, जिससे फर्जीवाड़े की पुष्टि होती है।

🔸 डॉ. प्रभात चंद्र प्रभाकर, जिन्होंने मेडिसिन जांच लिखकर हस्ताक्षर किए, उनकी हैंडराइटिंग की फॉरेंसिक जांच करवाने की मांग उठाई जा रही है।


CMHO की कार्यप्रणाली पर सवाल!

इस पूरे मामले में CMHO डॉ. बी.एल. राज की भूमिका भी सवालों के घेरे में आ गई है। उन्होंने डॉ. प्रभात चंद्र प्रभाकर को केवल ट्रांसफर करने की कार्रवाई की, मगर इस बात को लेकर संदेह बढ़ रहा है कि क्या वे वास्तविक दोषियों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं?

🔹 क्या जांच की आड़ में केवल छोटी मछलियों को फंसाकर बड़े घोटालेबाजों को बचाया जा रहा है?
🔹 क्या यह घोटाला सिर्फ कुछ लिपिकों और सहायक अधिकारियों तक सीमित है, या इसके पीछे बड़ा खेल छुपा है?


क्या पुलिस करेगी निष्पक्ष कार्रवाई या खेला जारी रहेगा?

अब सवाल यह है कि क्या पुलिस इस मामले की निष्पक्ष जांच करके असली गुनहगारों को बेनकाब करेगी, या फिर स्वास्थ्य विभाग की तरह यह जांच भी सिर्फ “फॉर्मेलिटी” बनकर रह जाएगी?

🚨 CMHO से मांगी गई जानकारी के बाद ही यह स्पष्ट हो पाएगा कि इस फर्जीवाड़े में कौन असली दोषी है और किसे बचाने की कोशिश की जा रही है। आम जनता की नजरें अब इस पूरे घटनाक्रम पर टिकी हुई हैं!

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