हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: पत्नी की सहमति के बिना यौन संबंध बनाना अपराध नहीं

बिलासपुर। छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने जगदलपुर निवासी एक व्यक्ति को अपनी पत्नी के साथ दुष्कर्म और अन्य आरोपों से बरी कर दिया, यह कहते हुए कि यदि पति अपनी वयस्क पत्नी के साथ उसकी सहमति के बिना भी अप्राकृतिक यौन संबंध बनाता है, तो इसे अपराध नहीं माना जा सकता।
मामले का संक्षिप्त विवरण
दिसंबर 2017 में जगदलपुर की एक महिला ने अपने पति पर अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने और जबरदस्ती करने का आरोप लगाया था। महिला की तबीयत बिगड़ने पर उसे सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उसकी मौत हो गई। मृत्यु से पहले मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज बयान में महिला ने अपने पति पर जबरन यौन संबंध बनाने का आरोप लगाया था।
इस बयान के आधार पर आरोपी पति को गिरफ्तार किया गया और 11 फरवरी 2019 को जगदलपुर फास्ट ट्रैक कोर्ट ने उसे दोषी ठहराते हुए 10 साल की कठोर कैद की सजा सुनाई।
हाईकोर्ट में चुनौती और सुनवाई
आरोपी ने निचली अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में अपील दायर की। उसके वकील ने तर्क दिया कि ट्रायल कोर्ट ने मामले में उचित साक्ष्यों पर विचार नहीं किया और सिर्फ महिला के बयान के आधार पर पति को दोषी ठहराया गया।
वकील ने यह भी कहा कि महिला पहले से ही गंभीर बीमारी से पीड़ित थी, जिसका उसके पति से हुए कथित कृत्य से कोई संबंध नहीं था।
हाईकोर्ट का फैसला
न्यायमूर्ति नरेंद्र कुमार व्यास ने 19 नवंबर 2024 को मामले में सुनवाई पूरी कर सोमवार को अपना फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा:
- आईपीसी की धारा 375 और 377 को ध्यान में रखते हुए, यदि पत्नी की उम्र 15 वर्ष से अधिक है, तो पति द्वारा उसके साथ किया गया कोई भी यौन संबंध रेप नहीं माना जा सकता।
- 2013 में हुए संशोधन में यह स्पष्ट किया गया था कि पति द्वारा पत्नी के साथ यौन संबंध बनाना बलात्कार की श्रेणी में नहीं आता।
- पति और पत्नी के बीच “अप्राकृतिक यौन संबंध” को भी अपराध नहीं माना जा सकता, क्योंकि धारा 377 आईपीसी पति-पत्नी के संबंधों पर लागू नहीं होती।
आरोपी को जेल से रिहा करने का आदेश
कोर्ट ने पाया कि भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (रेप) और 377 (अप्राकृतिक यौन संबंध) के तहत आरोपी पर कोई अपराध बनता ही नहीं था। इसके अलावा, आईपीसी की धारा 304 (गैर इरादतन हत्या) के तहत भी केस को कमजोर मानते हुए उसे रद्द कर दिया गया।
इसके साथ ही न्यायालय ने व्यक्ति को सभी आरोपों से बरी कर दिया और उसे जेल से तुरंत रिहा करने का आदेश दिया।
न्यायिक दृष्टिकोण और विवाद
यह फैसला कानून में मौजूद अपवादों पर आधारित है, लेकिन यह पति-पत्नी के रिश्ते में सहमति और महिलाओं के अधिकारों को लेकर एक बहस को भी जन्म देता है। इस फैसले को लेकर महिला अधिकार संगठनों और कानूनी विशेषज्ञों के बीच अलग-अलग प्रतिक्रियाएं देखने को मिल सकती हैं।
अब देखने वाली बात होगी कि इस मामले में आगे कोई पुनर्विचार याचिका दायर की जाती है या नहीं और क्या इस फैसले का व्यापक सामाजिक प्रभाव पड़ेगा।